जावेद अख्तर :देशप्रेम और देशभक्ति नैचुरल है,सकारात्मक है, रचनात्मक है! 

 पंकज कुमार श्रीवास्तव
एक दिन प्रसिद्ध गीतकार और शायर साहिर लुधियानवी से एक नौजवान शायर ने मुलाकात की। नौजवान शायर के लटके चेहरे को साहिर ने पढ़ा और पूछा-क्या बात है,बरखुरदार!उदास दिख रहे हो?”
उस नौजवान शायर ने बताया-दिन मुफल्लिसी में गुजर रहे हैं,किसी काम के अभाव में जीना दूभर हो रहा है।
साहिर बोले-ज़रूर!यह फ़कीर देखेगा कि क्या कर सकता है!फिर पास रखी मेज़ की तरफ इशारा किया- हमने भी बुरे दिन देखें हैं!फिलहाल इसे रख लो!
उस नौजवान शायर ने देखा-मेज़ पर दो सौ रुपए थे।
उस नौजवान शायर को दुनिया आज धर्मनिरपेक्षता के लिए रिचर्ड डॉकिन्स एवार्ड से सम्मानित,पद्मभूषण जावेद अख्तर के रूप में जानती है,सुनती है।
जावेद अख्तर बताते हैं-वो चाहते तो पैसे मेरे हाथ पर भी रख सकते थे,लेकिन ये उनकी सेंसिटिविटी थी कि कहीं मुझे बुरा न लग जाए।
त्रिशूल,दीवार और काला पत्थर जैसी फिल्मों में कहानी सलीम-जावेद की थी तो गाने साहिर साहब के।अक्सर वो साथ बैठते और कहानी,गाने,डायलॉग्स वगैरह पर चर्चा करते।इस दौरान जावेद शरारत में साहिर से कहते-आपके दौ सौ रुपए मेरे पास हैं, लेकिन दूंगा नहीं”
25अक्टूबर,1980की देर शाम साहिर लुधियानवी नहीं रहे।जावेद अख़्तर उनके घर पहुंचे,उनकी हथेलियों को छुआ जिनसे इतने खूबसूरत गीत लिखे गए हैं।लेकिन, अब वो ठंडे पड़ चुके थे।जूहू कब्रिस्तान में साहिर को दफ़न किया गया।साथ आए तमाम लोग कुछ देर के बाद वापस लौट गए,लेकिन जावेद काफी देर तक कब्र के पास ही बैठे रहे।नम आंखों से वापस जाने लगे तो साहिर साहब के एक दोस्त अशफाक साहबने उन्हें आवाज़ दी।अशफ़ाक हड़बड़ाए हुए चले आ रहे थे,उन्होंने आते ही जावेद साहब से कहा-आपके पास कुछ पैसे हैं क्या?कब्र बनाने वाले को देने हैं!
जावेद साहब ने पूछा-हां-हां,कितने रुपए देने हैं? अशफाक ने कहा-दो सौ रुपए!!!!!
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जावेद अख्तर प्रसिद्ध शायर जान निसार अख़्तर की औलाद और प्रसिद्ध शायर मुज़्तर ख़ैराबादी के पोता हैं।प्रसिद्ध शायर मजाज़ के भांजे हैं,तो कैफ़ी आज़मी के दामाद भी।
जावेद अख्तर 4अक्टूबर,1964को मुंबई आए तो उनके पास खाने तक के पैसे नहीं थे.उन्होंने कई रातें सड़कों पर खुले आसमान के नीचे सोकर बिताईं।बाद में,कमाल अमरोही के स्टूडियो में उन्हें ठिकाना मिला।
सलीम खान और जावेद अख्तर को सलीम-जावेद बनाने का श्रेय डायरेक्टर एसएम सागर को जाता है।अपनी फिल्म ‘सरहदी लुटेरा’ उन्होंने पहली बार इन दोनों को मौका दिया।इस फिल्म में सलीम खान ने हीरो की भूमिका भी अदा की थी।सलीम खान स्टोरी आइडिया देते थे और जावेद अख्तर डायलॉग लिखने में मदद करते थे।जावेद अख्तर उर्दू में ही स्क्रिप्ट लिखते थे,जिसका बाद में हिंदी अनुवाद होता था।
सलीम-जावेद की जोड़ी ने वर्ष 1971-1982तक करीबन 24फिल्मों में साथ किया जिनमें सीता और गीता,शोले,हाथी मेरा साथी,यादों की बारात,दीवार जैसी फिल्मे शामिल हैं।उनकी 24फिल्मों में से करीबन 20 फ़िल्में बॉक्स-ऑफिस पर ब्लाक-बस्टर साबित हुईं।70 के दशक में स्क्रिप्ट राइटर्स का नाम फिल्मों के पोस्टर पर नहीं दिया जाता था,लेकिन सलीम-जावेद ने उन बुलंदियों को छूआ कि पोस्टरों पर राइटर्स का भी नाम दिया जाने लगा।
1987में आई ‘मिस्टर इंडिया’के बाद सलीम-जावेद की सुपरहिट जोड़ी अलग हो गई।इसके बाद भी जावेद ने फिल्मों के लिए संवाद लिखने का काम जारी रखा।उन्होंने फिल्मों में गीत भी लिखे,जिसमें तेज़ाब,1942:अ लव स्टोरी,बॉर्डर और लगान शामिल हैं।
जावेद अख्तर की पहली पत्नी हनी ईरानी थीं,जिनसे उनकी पहली मुलाकात ‘सीता और गीता’ के सेट पर हुई थी।हनी इरानी से उनके दो बच्चे हैं-फरहान अख्तर और ज़ोया अख़्तर।फरहान पेशे से फिल्म निर्माता,निर्देशक,अभिनेता,गायक हैं।जोया भी निर्देशक के रूप में अपने करियर कि शुरुआत कर चुकी हैं। जावेदकी दूसरी पत्नी फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी हैं।
जावेद साहब से मिलने की पहली असफल कोशिश मैंने 2011में की थी।जूहू,मुंबई स्थित उनके आवास पहुंचा।लेकिन,शबानाजी और जावेद दोनों अलग-अलग देशों में गए हुए थे।
जावेद साहब को देखने का सौभाग्य अक्टूबर,2019में इंडिया टुडे/आजतक के आयोजन-‘साहित्य-आजतक’ के दौरान मिला।ठसाठस भरे बड़े से पंडाल में सैकड़ों युवकों युवतियों के सामने वह आजतक की स्वनामधन्य एंकर अंजना ओम कश्यप के सवालों का जवाब दे रहे थे।
अंजना ओम कश्यप उन्हें याद दिलाती है कि पिछली दिवाली में अपने शुभचिंतकों कै मुबारकबाद देते हुए उन्होंने कहा था-नए चराग जलाओ,कि रोशनी कम है!वह पूछती हैं-उन्हें क्यों लगता है कि रोशनी कम है। जावेद स्पष्ट करते हैं कि जबतक दुनिया मेंनाइंसाफी है,ज़हालत है,दुश्वारियां हैं,बेशक रोशनी कम है। लेकिन,नए चराग जलाने का संकल्प भी तो है।
अंजना ओम कश्यप उन्हें याद दिलाती हैं कि दो साल पहले इसी मंच से उन्होंने अपनी रचना सुनाई थी-
हुकूमनामा।उनके अनुरोध पर जावेद साहब ने अपनी नई रचना सुनाई-साजिश।
‘साजिश’
मुझे तो ये लगता है-
जैसे किसी ने यह साज़िश रची है,
के लफ़्ज़ और माने में जो रिश्ता है,
उसको जितना भी मुमकिन हो,कमज़ोर कर दो!
के हर लफ़्ज़ बन जाए-बेमानी आवाज़,
फिर सारी आवाज़ों को ऐसे गड्ड-मड्ड कर दो,ऐसे गूँजो
के एक शोर कर दो!
ये शोर-एक ऐसा अँधेरा बुनेगा,
के जिसमें भटक जाएँगे,अपने लफ़्ज़ों से बिछड़े हुए
सारे गूँगे
मानी
भटकते हुए रास्ता ढूँढते,
वक्त की खाई में गिर के मर जाएँगे,
और फिर आ के बाज़ार में खोखले लफ़्ज़
बेबस ग़ुलामों के मनिंद बिक जाएँगे!
ये ग़ुलाम-
अपने आकाओं के एक इशारे पे
इस तरह यूरिश करेंगे,
के सारे ख़यालात की सब इमारत
सारे जज़्बात के शीशाघर
मुनादिम हो के रह जाएँगे।
हर तरफ़ ज़हन की बस्तियों में,
यही देखने को मिलेगा
के एक अफ़रा-तफ़री मची है,
मुझे तो ये लगता है-
जैसे किसी ने यह साज़िश रची है।
मगर कोई है!
जो कहता है मुझसे,
के हैं आज भी
लफ़्ज़मानी के ऐसे परीश्तारो शहादा
जो मानी को यूँ बेज़बान
लफ़्ज़ को ऐसे नीलाम होने न देंगे!
अभी ऐसे दीवाने हैं,
जो ख़यालात का,सारे जज़्बात का,
दिल की हर बात का
ऐसे अंजाम होने न देंगे
अगर ऐसे कुछ लोग हैं,तो कहाँ हैं?
वो दुनिया के जिस कोने में हैं,जहाँ हैं
उन्हें यह बता दो
के लफ़्ज़ और मानी
बचाने की ख़ातिर,
ज़रा सी ही मोहलत बची है
मुझे तो ये लगता है जैसे,
किसी ने यह साज़िश रची है!
अंजना उनसे ‘राष्ट्रवाद’ पर उनका नजरिया जानने की कोशिश करती हैं।जावेद साहब स्पष्ट करते हैं कि
‘राष्ट्रवाद’ पर आजकल दो परस्पर विरोधी एक्सट्रीम स्टैंड सामने आए हैं और दोनों ही एक्सट्रीम स्टैंडों से वह खुद को सहमत नहीं कर पाते।
वह स्पष्ट करते हैं-हम मनुष्य हैं,हममें भावनाएं हैं, जज़्बात हैं,हम अपने परिवार से,अपने समाज से,अपने गांव,शहर,टोला से प्रेम करते हैं,अपनी बोली,भाषा, संस्कृति से प्रेम करते हैं,देश के स्तर तक इसका विस्तार ही देशप्रेम है,देशभक्ति है,राष्ट्रप्रेम है,यह स्वाभाविक है,नैसर्गिक है,नैचुरल है।देशप्रेम और देशभक्ति सकारात्मक है,रचनात्मक है,नकारात्मक नहीं है,विध्वंसात्मक नहीं है,इसमें नफरत और विद्वेष के लिए कोई जगह नहीं है।वह बताते हैं-मैं मैरी कॉम से कभी नहीं मिला,लेकिन वह दूसरे देशों में जीतती हैं,तो मैं खुश होता हूं,यह एकात्मकता,यह तादात्म्य देशभक्ति है, देशप्रेम है।
लेकिन,देशप्रेम,देशभक्ति या राष्ट्रवाद के नाम पर किसी दोस्त को नफरत करने का स्प्रिंगबोर्ड नहीं बनाना चाहते। लेकिन, त्रासदी यह है कि अगर कोई हमसे असहमत हैं,हमसे मतभिन्नता रखता है,उसकी सोच, उसकी जीवनशैली,उसकी कार्यशैली हमसे अलग है,तो
उससे नफरत करना, उससे विद्वेष रखना राष्ट्रप्रेम का बैरोमीटर बनाया जा रहा हैं और इसे राष्ट्रवाद की संज्ञा देना,गैरवाजिब है,गैर मुनासिब है।
किसी की असहमति को नहीं सुनना,विरोध के प्रति असहिष्णुता दिखाना हजारों साल पुरानी हमारी परंपरा का अपमान है।जैसा लोकतंत्र हमारे यहां है,वैसा कहीं नहीं है,क्योंकि हम 5000साल से प्रशिक्षित हो रहे थे।
कई पड़ोसी मुल्कों में जहां असहमति और विरोध के स्वर के प्रति असहनशीलता और असहिष्णुता है।उन्हीं मुल्कों की तरह असहिष्णुता सिखाने वाले हमें हमारी हजारों साल की परंपरा से अलग कर रहे हैं।
जावेद अख्तर को 14 बार फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला।इनमें सात बार उन्हें बेस्ट स्क्रिप्ट के लिए और सात बार बेस्ट लिरिक्स के लिए अवॉर्ड से नवाजा गया।जावेद अख्तर को 5 बार नेशनल अवॉर्ड भी मिल चुका है।
1999-पदमश्री साहित्य में बहुमूल्य योगदान के लिए
2004-किशोर कुमार सम्मान-गीतकार के क्षेत्र में
2007-पद्मभूषण
2020-रिचर्ड डॉकिंस अवार्ड

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